सोचा एक दिन जी कर देखें तेरे बिन

सोचा एक दिन जी कर देखें तेरे बिन
पर क्या बताउँ केसे था काटा,
जहाँ तक नज़रें थीं
वहाँ तक था सन्नाटा ,
हर चीज़ अपनी जगह पर ही थीं
पर उजाले मे कमी थी,
प्रतिदिन की भाँती निरंतर चल रहा था सब
पर इल्म ना हुआ
कि कब दिन शुरू और ख़तम हुआ कब,
कुछ ही घंटे काफ़ी रहे सब समझने के लिए
हर चीज़ को प्रेम चाहिए ज़िंदा रखने के लिए…….

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