जि़न्दगी क्या है एक मेला है
जि़न्दगी क्या है एक मेला है
जिसमें हर आदमी आखिर में अकेला है
जो मुश्किलों में उलझ जाए उसके लिए वो एक झमेला है
और जो इन्हें पार कर ले उसके लिए हर रोज एक नया सँवरा है
सुख-दुख यहाँ भगवान ने सभी को बाँटा है
परन्तु दुःख के समय हम ऐसा क्यों सोचते है कि
इसके लिए भगवान ने हमें ही छाँटा है
क्यों हम इतने स्वार्थी बन जाते है
कि खुशी के पलों को अपना हक़ जानते है
और दुःख के पल में दूसरों को उसका कारण मानते है
समझ कर सोचो तो जानो
केसा विचित्र है ये इन्सान
जो भूल जाता है जि़न्दगी देने वाले को
और खुद को समझने लगता है भगवान
जिसमें हर आदमी आखिर में अकेला है
जो मुश्किलों में उलझ जाए उसके लिए वो एक झमेला है
और जो इन्हें पार कर ले उसके लिए हर रोज एक नया सँवरा है
सुख-दुख यहाँ भगवान ने सभी को बाँटा है
परन्तु दुःख के समय हम ऐसा क्यों सोचते है कि
इसके लिए भगवान ने हमें ही छाँटा है
क्यों हम इतने स्वार्थी बन जाते है
कि खुशी के पलों को अपना हक़ जानते है
और दुःख के पल में दूसरों को उसका कारण मानते है
समझ कर सोचो तो जानो
केसा विचित्र है ये इन्सान
जो भूल जाता है जि़न्दगी देने वाले को
और खुद को समझने लगता है भगवान
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