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Showing posts from December, 2016

कहीं दूर एकेले सुनसान सड़क पर हम

 कहीं दूर एकेले सुनसान सड़क पर हम तन्हाईओं ने हमे जकड़ा या बेबसी को कमज़ोर बना हमने पकड़ा खुद को भिगो रहे थे या बारिश की बूँदो से मैल को धो रहे थे, मायूसी का नज़ारा था क्या वक़्त का इशारा था खामोशियाँ बहुत कुछ बयान कर रही थी, लिफाफो में बंद पन्नो को खोल थम रही थी, चंद हसीन लम्हों की झलक दिखा जिनको देख मन में उत्साह फिर जगा, तुरंत वक़्त को सलामी दे तोड़े बंधन गुलामी के, छोड़े वो बेबसी के पल उसी वक़्त के हाथ में निकल पड़ा लेकर वही लकीरे जिन पर मिट्टी जम गई थी जिनके कारण कुछ पल ज़िंदगी थम गई थी....

रंगों ने मेरी ज़िंदगी

रंगों ने मेरी ज़िंदगी  कुछ इस तरह खिलाई जिस  रंग को मैने अपनाया उस रंग ने मेरी एक नई पहचान बनाई........

आशिक हैं तेरे

आशिक हैं तेरे तेरी हर अदा पर मरते हैं, जब तक तुझे ना देखें साँस नही भरते हैं, कब तक तड़पाएगी बाहों में कब समाएगी, आजा बन कर पानी मैं पियासा तेरा, क्या कहूँ बहुत कोशिश की पर बिन तेरे मैं जी नही सका..............

कदम ज़िंदगी में कभी रुकने नही चाहिए

कदम ज़िंदगी में कभी रुकने नही चाहिए रुकना चाहिए गर ......... तो वो है ना उम्मीदि का ख़याल..................

कैसे कहूँ मन की बात

कैसे कहूँ मन की बात हालत रोक रहें है, आज आँखें ही पढ़ लेना दोस्तों, जज़्बातों से गुफ्तगू कभी और कर लेंगे, आज इन आँखों के सैलाब की बारी है जिनकी तुम्हारे कंधों से यारी है.............

रूठ गई अगर ज़िंदगी

रूठ गई अगर ज़िंदगी उसे मनालो जो अब तक सो रहा है जतन कर उसे जगालो, जो रिश्ते पियार की डोर से बँधे हैं उन्हें निभलो यदि समय की कमी है तो कुछ भी करो ..... उसे निकालो फलसफा ज़िंदगी का बहुत आसान है उसे सुलझालो, जो आज तुम्हारे लिए खड़ा है उसके संग तुम भी कदम बढ़ालो, मत भुनो खुद को इस भागती हुई ज़िंदगी की लड़ाई में......... जो तुम्हारे संग मन लगाए बैठा है तुम उसके संग मन लगालो, हफ्ते में एक शाम दोस्तो के संग बितालो, जो जिस पल मिल जाए उस पल उसके मज़े उतालो...............

छू लेता है , तेरा दर्द मुझे

छू लेता है , तेरा दर्द मुझे बिन कहे तेरे ये मेरी चाहत है या दीवानगी मैं नहीं जानता , मुझे तुझमें .... मेरा रब दिखता है बस मैं ये हूँ मानता............

हर कदम पर साथ चलना

हर कदम पर साथ चलना बात नही हाथो मे हाथ रखना, लवज़ो से कह ही नही पाऊँगा मेरी आवाज़ नही …..खामोशी को पढ़ना, ये कला मैने तुमसे ही सीखी है आँखों के रास्ते ही तो महोबत जीती है, तभ मैं नही समझ पाता था अब समझा हूँ जब भी कुछ कहता था तुम खामोशी से क्यूँ एक्रार करती थी, अब ज़माने की नज़र से मैं डरता हूँ पहले तुम डरती थी…..

मन भ्रमण

मन भ्रमण बैठा बैठा पत्थर पर खरोचें मारता ज़माने का गुस्सा उस पर उतारता , खुद को आज बेबस महसूस करता हूँ पत्थर की तरह बेज़ुबान सही पर पत्थर नही बन सकता हूँ , क्योंकि मैं सच बोलता हूँ जो ज़माने को मंज़ूर नही झूठी ज़िंदगी जीने की शायद उनकी आदत सी बन गई है , दम घुटने लगा है अब बनावटी सा लगने लगा सब , उनके साथ मेल रखता हूँ तो खुद के असूलों से गिरता हूँ , और जब भी मन भ्रमण कर , मन की सुनता हूँ तो भीड़ में भी मस्त सपने बुनता हूँ , अब लगता है कि मैं अपने खुवाबो के साथ बेवफ़ाई नही कर पाउँगा मैं चाहूँ भी तो इन लोगो के साथ निभा नही पाउँगा , उनके तो घरों के शीशे भी एहेंकारी   से लगते हैं मुझे तो ये लोग वास्तव में , बिखारी  लगते हैं |