कहीं दूर एकेले सुनसान सड़क पर हम
कहीं दूर एकेले सुनसान सड़क पर हम तन्हाईओं ने हमे जकड़ा या बेबसी को कमज़ोर बना हमने पकड़ा खुद को भिगो रहे थे या बारिश की बूँदो से मैल को धो रहे थे, मायूसी का नज़ारा था क्या वक़्त का इशारा था खामोशियाँ बहुत कुछ बयान कर रही थी, लिफाफो में बंद पन्नो को खोल थम रही थी, चंद हसीन लम्हों की झलक दिखा जिनको देख मन में उत्साह फिर जगा, तुरंत वक़्त को सलामी दे तोड़े बंधन गुलामी के, छोड़े वो बेबसी के पल उसी वक़्त के हाथ में निकल पड़ा लेकर वही लकीरे जिन पर मिट्टी जम गई थी जिनके कारण कुछ पल ज़िंदगी थम गई थी....