जज़्बात हैं

अल्फाजों में कुछ यूं जज़्बात हैं 
कि वो मिल जाते हैं महफीलों में कभी- कभी... 
और हम इस उम्मीद पर 
हिस्सेदार बन जाते हैं 
हर इक महफिल के 
फिर चाहे हो कहीं....

 

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