कुछ लब्ज़ उतार दिए
खामोश हूं
बेजुबां नहीं ...
बस बेवजह में बोलता नहीं
क्या सोचा तुमने कि मैं
समझता नहीं?
मैं सब समझता हूं बस तुम्हें अपना इस कदर
समझ बैठा हूं ..
कि उसके आगे अब ना ही मुझे कुछ और ...
और ना ही मैं किसी को
जचता हूं...
कुछ लब्ज़ उतार दिए
कुछ पुचकार दिए
कुछ जज्बातों के चलते ...सवार दिए
कुछ वक्त के आगे वार दिए...
सच..
ज़िन्दगी...खिल जाती है
यदि परिस्थितियों में मिल जाती है..
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