कमाल है ज़िन्दगी
जब किनारा नहीं था
हम कश्ती में थे ...
जब सहारा नहीं था
हम बस्ती में थे ...
कमाल है ज़िन्दगी
जब पुकारा नहीं था
तब साथ में थे...
जब ज़रूरत थी
वो बचने की ताक में थे.
अब हम उन रास्तों पर चल चुके हैं
जहां हम तन्हाइयों से मिल चुके हैं ....
अब ज़माने की मार की भी
परवाह नहीं ....
जब हम अपनो के लिए
अपनों की खातिर
जल चुकें है.....
Comments
Post a Comment