ये कोरोना काल का कैसा चक्का है
ये कोरोना काल का कैसा चक्का है
पल पल हर पल मे इंसा को धक्का है
हर चीज़ चल रही है विपरीत
हर कोई हक्का बक्का है
अब कुछ भी निश्चित नहीं
जिस जिस में इंसा पक्का है
ये कैसा कल्युग का दौर है
ज़िन्दगी और सांसों के बीच
मौत की दौड़ है
ना बिता हुआ कल तुम्हारे हाथ में था
ना आने वाला कल
तुम्हारा आज भी तुम्हारे हाथ में नहीं
ना ही निकलता हुआ ये पल
फिर किस बात का है इतना गुरूर
बस कर्मों पर ध्यान दे
क्योंकि होना वही है
जो हो उसको मंजूर
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