anubhav
मुझे मेरे दायरे पता है
इसका सिर्फ ये मतलब नहीं की वे सब सही है
इसका ये भी मतलब है की
उन दायरों ने जिस रूप में मुझे दिखाएं हैं किनारे
मैंने उन्हें उस ही रूप में हैं स्वीकारें
.
अकेले चलते चलते मंज़िल पर थक गया
उँचाईओ को छूने की चाह में मन फँस गया,
मुड़ कर देखा
तो मेरा साया भी मुझ पर हँस गया जिन्हें तू छोड़ आया है मुसाफिर
देख वहाँ काफिला बस गया, तेरे पास सुख दुख बाटने को भी कोई नहीं अकेले इस बुलन्दिओ को छूने की चाह में
तू किस दल दल में धंस गया, कई बार पुकारा भी तुझे
पर तू नज़र अंदाज़ कर गया
गौर फरमां खुद पर ए बंदे
सब होते हुए भी अब तू
अपनों के लिए भी तरस गया.......
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