STOP RAPE...KILL THE RAPIST
STOP RAPE...KILL THE RAPIST
एक बच्ची , एक लड़की , एक माँ , एक औरत की ओर से
आप सभी को प्यार भरा नमस्कार
कहते हैं आज भी समाज को यह सिख़ाओ
उन्हें याद दिलाओ
अपनी बेटिओं को बचाओ
जी हाँ
बेटी बचाओ
ये एक ऐसा दर्द भरा मुद्दा है
एक ऐसा कड़वा सच है
जो आज भी ज़िंदा है
जो की मरने के लिए तड़प रहा है
हमारी बच्चियों के दिलों में ख़ौफ़ पैदा कर धड़क रहा है,
शर्म आती है बच्चो को यह कहते हुए
चलो जगह जगह काग़ज़ चिकाएँ
बेटी बचाओ बेटी बचाओ के नारे लगाएँ ,
क्यों आख़िर क्यों ये वक़्त की मार भड़ती जा रही है
ख़त्म होने के बजाए
दर्द नाक हादसों से बच्चियाँ आज भी गुज़रती जा रही हैं ,
रोज़ क़ानून बनते हैं ,
रोज़ लड़कियाँ मरती हैं
कुछ ऐसी भी टकराती हैं
जो आंदोलन उठा लड़ गुज़रती हैं,
पर क्या कुछ नतीजा वाक्य निकल पा रहा है
क्या सच में समाज बदल पा रहा है,
एक लड़की की गुहार प्रस्तुत करना चाहूँगी
हम सबको उसके नज़रिए से समाज से मिलवाना चाहूँगी,
जी हाँ
वो कहती है
कि बड़ी ही गुज़ारिशों के बाद
जीने को मिलते हैं हमे कुछ ही खुवाब
पल में मार कर हमे ज़िंदा करने का
क्या हुनर दिखाते हैं आप ,
वैसे घर घर पूजी जाती हैं देवियों की मूरत
पर मिठाई बाटने में हिचकिचाते हैं जब देखते हैं पैदा हुई लड़की की सूरत ,
हमें ये जताते हैं
की मान बराबर दिलवाते हैं
पर जब लुटती है सारे बाज़ार हमारी इज़्ज़त
तो इल्ज़ाम हम पर या हमारे कपड़ों पर लगाते हैं
कापी , पेन्सिल से लेकर , हमारी उम्र तक हमसे छीन ले जाते है
ये वो जसबात हैं जनाब
जो दिलों मे दफ़्न रहते हैं
क्योंकि देख कर भी , किसी को नज़र नही आते हैं,
बावजूद इन सबके भी
औरत बर्दाश करने की हर हद को पर करना चाहती है
और इस समाज को उसकी खूबसूरती का शिकार करे बिना....................................नींद कहाँ आती है,
ताजुब इस बात का भी है
कि जिस समाज के लोग हमे दबा कर खुद को इंसान बताते हैं
वो हमारे ज़रिए ही
नए जीव को जन्म दे पाते हैं,
हम चीखते है तो आवाज़ हमारी दबा दी जाती है
हमारी जन्म पत्रि पर कलम
समाज की क्यों चलाई जाती है,
होश उस दिन क्यों गावा नही बैठते हम
जिस दिन औलाद औरत की इज़्ज़त नही कर पाती है
क्यों नही तोड़ देते वो सारे बंधन
जिसमे समाज की लगाई हुई आग औरत को छू जाती है...........................................
कुछ दर्द से भरी पंक्तियों के साथ अंत करना चाहूँगी
मौत से मिलकर किसी को मार देना फिर भी आसान है
जीतेजी किसी के ज़मीर को मार कर उसे ज़िंदा रहने पर मजबूर कर देना
क्या कहूँ .............क्या कहूँ
वो एक लाश है
हर जगह है शमशान
जिस्म तो ज़िंदा है
पर मर गया भीतर बैठा इंसान,
देखती है वो हर ओर
नज़र आता है अंधेरा
उसके जीवन में वो रात रह जाती है
जिसका नही होता कोई सवेरा,
जीती है फिर भी वो
क्योंकि सांसो का हिसाब पोरा हुआ नही
मर कर उसने इंसाफ़ पाया तो क्या
जो ज़िंदा रह कर कभी जिया ही नही................
धन्यवाद
सोनाली सिंघल
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