मन की बात
एहसासों को रिश्तों में तोलते ही रह जाते हैं
जाने मन की बात मन से ही
बोल कर क्यों रह जाते हैं?
मैं कह रही थी तुमने सुना नहीं
में सह रही थी तुमको हवा नही
ये कैसा प्यार का रिश्ता है
जो महफिलों में हर पल
और आइने में एक पल को भी
नहीं दिखता है...
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