anubhav
नजाने ज़िन्दगी ने कब
बड़ा कर दिया जिसका ख्वाबों में भी ना था निशान उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया दबा दिए थे जो दर्द भरे लम्हें जब चाहा ज़िन्दगी ने उन्हें हरा कर दिया और जिस दिन चाहतों के बीज बोने छोड़े
उस ही दिन दामन उम्मीदों के साथ खड़ा कर दिया
ज़िन्दगी के अजब से पहलू से वो
आज टकराती है
जिस चाकू से उसे भी मोहब्बत थी आज उसमें जाने से कतराती है
उड़ान के नए परवी अब बनाती है
कभी उड़ती है गिरती है।
पर ज़माने के ड से अब नहीं घबराती है।
वजह
वो भी अब उड़ना चाहती है।
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