anubhav
निकल पड़ा हूँ अकेले अब खुद की है तलाश
रहकर महफिलों में अपनों की
रह जाता है हताश
दिल की बयां करू तो
भी नहीं मिलता वो एहसास
जिसकी है तलप मुझे मैं ढूंढू अब वो खास
अनजान हूं जिसकी परछाई से
मैं खुद में हूं
अब या उस सुकून वजूद में कभी देखा नहीं कभी मिला नहीं
फिर भी चला रहा हूं अपने मकसूद में
और हम उन्हें बार-बार
निराश करते रहे
मैं अपनी तकलीफ बताऊंगी
तो तुम सह नहीं पाओगे
मैं वजूद खो कर
रहने का दम रखती हूं
तुम ऐसे रह नहीं पाओगे
जानने के बाद भी मैं
सिर झुका कर चल पडूंगी
क्या तुम जानने के बाद
झुक पाओगे??
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