anubhav
थक गए हालात भी
धंस गए जज़्बात भी
भिखर गए तख्तोताज भी
थम गए सब ख्वाब भी
बहुत हो गया अब
क्या है किसी के पास कोई जवाब भी
ऐ खुदा तू ही बता दे ज़रा
और कितने बाकी हैं हिसाब अभी
गुज़ारिश है माफ करदे गुनाह सभी
थम गया है जो सब एक बार
फिर उसमें' पर लगाए
टूट गए हैं सारे घमंड
सूरज आज भी पीला है
ज़मीं में आज भी नमी है
बस इंसा में ही सारी कमी है
काश इस बात को हम समझ पाते
तो कलयुग के इस कहर से
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