महोबबत बेहिसाब थी कुछ मेरे पास कुछ उसके पास थी, बातों के दरमियाँ फ़ासले थे लैला मजनूं के काफिले थे, मन में तरंग थी बस हिम्मत तंग थी, डोर से डोर तो मिल जाती थी बस दिल की बात ज़ुबान पर नही आती थी होंठों पर मेरे कशिश थी आँखों में उसके जवाब था, मिलना लाज़मी था क्योंकि खुदा के घर हमारी महोबबत का हिसाब था..............