थक कर ज़िंदगी से जब घर लौटी वही साथी इंतेज़ार कर रहा था सवेरे,

बहुत छोटी सी बात

ज़िंदगी ने हमे बहुत कुछ दिया
मैने वही देखा
जो नही मिला
उसके पीछे ही भागती रही
जो मेरे लिया बना ही नही,

जो साथ था मेरे
उसे दिखाए मैने अंधेरे
थक कर ज़िंदगी से जब घर लौटी
वही साथी इंतेज़ार कर रहा था सवेरे,
मेरे पास उसे कहने को ना थे शब्द
उसने दो पंखतियों समझाया ज़िंदगी का अर्थ,

कि अच्छे दिन आएँगे
जिस दिन से
जो है हम उसमे खुश रहना सीख जाएँगे..........

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