बेरूख़ी सी लगती ज़िंदगी का हमने ज़रा सा रुख़ क्या बदला आसमाँ की उचाईं खुवाबों में मिलने आ गई धरती की गहराई अपनी नमी से हमको सैला गई, फ़र्क सिर्फ़ सोच का ही निकला परिस्थितियाँ वही रही एक ने गिराया तो एक ने उठाया.............
बेरूख़ी सी लगती ज़िंदगी का हमने
ज़रा सा रुख़ क्या बदला
आसमाँ की उचाईं खुवाबों में मिलने आ गई
धरती की गहराई
अपनी नमी से हमको सैला गई,
फ़र्क सिर्फ़ सोच का ही निकला
परिस्थितियाँ वही रही
एक ने गिराया
तो एक ने उठाया.............
ज़रा सा रुख़ क्या बदला
आसमाँ की उचाईं खुवाबों में मिलने आ गई
धरती की गहराई
अपनी नमी से हमको सैला गई,
फ़र्क सिर्फ़ सोच का ही निकला
परिस्थितियाँ वही रही
एक ने गिराया
तो एक ने उठाया.............
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