एक समारोह के समान बन गई है ज़िंदगी लोग आते हैं मज़े उठाते हैं और चले जाते हैं नज़ाने हम कुछ कह कर क्यों नही पाते हैं .............
एक समारोह के समान बन गई है ज़िंदगी
लोग आते हैं
मज़े उठाते हैं
और चले जाते हैं
नज़ाने हम कुछ कह कर क्यों नही पाते हैं .............
लोग आते हैं
मज़े उठाते हैं
और चले जाते हैं
नज़ाने हम कुछ कह कर क्यों नही पाते हैं .............
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