माँ थी तो आँगन में कढ़ी चावल बना मिलता था आज बिन माँ के आँगन पहुँची हूँ तो बाबुल बैठा अपना दर्द सिलता था ...............
माँ
आँसुओं की आवाज़ सुन लेती थी
माँ
चीखती आवाज़ की वजह बुन लेती थी
माँ
मुझे सितारे गिन कर दिखा देती थी
माँ
हर सपने को सुनेहरा बना देती थी
माँ
थी तो आँगन में कढ़ी चावल बना मिलता था
आज बिन माँ के आँगन पहुँची हूँ तो
बाबुल बैठा अपना दर्द सिलता था ...............
आँसुओं की आवाज़ सुन लेती थी
माँ
चीखती आवाज़ की वजह बुन लेती थी
माँ
मुझे सितारे गिन कर दिखा देती थी
माँ
हर सपने को सुनेहरा बना देती थी
माँ
थी तो आँगन में कढ़ी चावल बना मिलता था
आज बिन माँ के आँगन पहुँची हूँ तो
बाबुल बैठा अपना दर्द सिलता था ...............
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