खामोशी शहनाईयां बजा रही है जन्मो का साथ बँध रहा है.

कहीं आँखों का काजल
लुभता रहा
कोई होंठों की लाली चुराता रहा

महफ़िल से जब वो निकलते थे
महोब्बत खुद समा बनाता रहा,

जान गया था वक़्त
कि यहाँ खुदा वास कर रहा है

खामोशी शहनाईयां बजा रही है
जन्मो का साथ बँध रहा है.

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