तकलीफ़ों का भी क्या मस्त हिसाब है

तकलीफ़ों का भी क्या मस्त हिसाब है

आती हैं
रूलाती हैं
तोड़ जाती हैं
फिर छोड़ भी जाती हैं ,
और फिर
यादों में ठहरा हुआ वक़्त बन कर
तज़ुरबों की कहानियाँ सुनाती है ..................

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