पैदा ये होता नही बाज़ार मे बिकती नही ,
इंसानियत का आकाल
इस तरह बढ़ता जा रहा है ,
कि कोई विरला इसके साथ जीना चाहे भी तो
वो एकेला पड़ता जा रहा है ,
पैदा ये होता नही
बाज़ार मे बिकती नही ,
सस्ती हो गई है इज़्ज़त बहुत
इसलिए ज़िंदगी की असली एह्मियद किसी को दिखती नही
इस तरह बढ़ता जा रहा है ,
कि कोई विरला इसके साथ जीना चाहे भी तो
वो एकेला पड़ता जा रहा है ,
पैदा ये होता नही
बाज़ार मे बिकती नही ,
सस्ती हो गई है इज़्ज़त बहुत
इसलिए ज़िंदगी की असली एह्मियद किसी को दिखती नही
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