नज़्में में लिख पाता हूँ तेरे ही वजूद से
तेरी चाहत का चढ़ा अजब सा फितूर है
जीना है बस अब वहां जहाँ तेरा सुरूर है ,
नज़्में में लिख पाता हूँ
तेरे ही वजूद से
तेरा मेरा रिश्ता जैसे
छाऊ और धुप से ,
मन लगाता नहीं
खुद ब खुद लग जाता है
जहाँ भी जाऊँ
बस तू ही नज़र आता है ............
जीना है बस अब वहां जहाँ तेरा सुरूर है ,
नज़्में में लिख पाता हूँ
तेरे ही वजूद से
तेरा मेरा रिश्ता जैसे
छाऊ और धुप से ,
मन लगाता नहीं
खुद ब खुद लग जाता है
जहाँ भी जाऊँ
बस तू ही नज़र आता है ............
Comments
Post a Comment