इस आग में कूदे बिना रह भी नहीं पाउँगा
शामें भीगी गई. थी
राते सूखी सूखी
सुबह का सवेरा बना अँधेरा
और
दोपहर को मजबूरियों ने जैसे घेरा
सिर्फ एक तुझसे जुड़ा हूँ
तो इस मोड़ पे खड़ा हूँ
तुझ में मिल गया तो सोच नहीं पा रहा
ग़ुम जाऊंगा या खिल जाऊंगा
पर अंजाम जो भी हो
इस आग में कूदे बिना रह भी नहीं पाउँगा
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