खुवहिशे रूह से लिप्टी थी

खुवहिशे रूह से लिप्टी थी
आसमाँ को छूने की चाह में
आत्मबल से लिपटे थे कदम
ना रुके चाहे हो जो राह में,
मंज़िलों से चैन की रहें मुझे खींच ती थी
जब भी दो कदम रुकता था
मेरी सांसो को भींचती थी ,
ये जुनून मुझे आज कहाँ ले आया है
सपनें मे भी नही जो खुवाब देखा था
वो सच कर दिखलाया है

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