व्याकुल मन मुरझाया सा तन
व्याकुल मन
मुरझाया सा तन
सुना रहा है दास्तान
किस भीड़ में खो रहा है इंसान ,
वक़्त नही रहा
एक दूजे के लिए
अपनों का साथ छोड़ कमा रहें है
जाने किस के लिए ,
इंसान खुद को महत्वाकांक्षाओं की आग में सेक रहा है
अपनो को तड़पता हुआ देख रहा है,
माँ बाबा वक़्त से पहले बूड़े बना दिए
एहसास जाने किस - समुंदर में बहा दिए,
सोने में लिपटा है आज
पर सो नही पाता
पैसे की चकाचौंध से घिरा है
पर मन में रहता सन्नाटा,
घर लौटने का वक़्त नही
इसलिए अब मकान में रहता है
साथ चलने का वक़्त नही
इसलिए आज इंसान एकेला रहता है...................
मुरझाया सा तन
सुना रहा है दास्तान
किस भीड़ में खो रहा है इंसान ,
वक़्त नही रहा
एक दूजे के लिए
अपनों का साथ छोड़ कमा रहें है
जाने किस के लिए ,
इंसान खुद को महत्वाकांक्षाओं की आग में सेक रहा है
अपनो को तड़पता हुआ देख रहा है,
माँ बाबा वक़्त से पहले बूड़े बना दिए
एहसास जाने किस - समुंदर में बहा दिए,
सोने में लिपटा है आज
पर सो नही पाता
पैसे की चकाचौंध से घिरा है
पर मन में रहता सन्नाटा,
घर लौटने का वक़्त नही
इसलिए अब मकान में रहता है
साथ चलने का वक़्त नही
इसलिए आज इंसान एकेला रहता है...................
Comments
Post a Comment