माँ की गोद में सिर रख आज सोने का है मन

मन डरा - डरा सा
घूमे फिरा- फिरा सा,

जिसे पकड़ना चाहता है
वो और भी दूर भाग जाता है,

बेवक़्त के स्वप्न
मुझे डराने का कर रहे ज्तन,

माँ की गोद में सिर रख
आज सोने का है मन,

ज़िंदगी की भीड़ में भागते - भागते
आज एहसास होता है
माँ के साथ हर लम्हें में विश्‍वास होता है,

शायद इसलिए.................
जैसे जैसे वक़्त का काँटा
हमारी उम्र बढ़ता है,
माँ के स्नेह से लिपटे धागों को इंसान .......... समेटना चाहता है,

सच कहता हूँ माँ
तेरी आशीर्वाद की शक्ति का व्यखायान किया नही जा सकता,
मैं चाहे कहीं भी हूँ
तेरे स्मरण में इतनी ताक़त है
की ये डर का साया भी , भाग जाता.........

  माँ
तेरा आँचल हो चाहे तेरा एहसास 

सुकून मिलता सिर्फ़ तेरे पास ........


माँ की गोद में सिर रख आज सोने का है मन............


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