मन क्यूँ रुआंसा है

मन क्यूँ रुआंसा है
हर ओर लगता धुआंसा है
फूल खिल रहें हैं
पर मेरा दम घुट रहा है
हर ओर उजाला है
पर मेरे मन का दीपक बुझ रहा हैं
चिड़िया चहक ती है तो लगता है
मुझ पर हस्ती है
मेरे मन सुकून जाने क्या
मुझसे कह रहा है........
खुद को ही आज पढ़ नही पा रही हूँ
जिस रह पर नही चलना चाहती
उस पर चलती जा रही हूँ..............



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