मुक्कदर से पूछ बैठते हैं हम

मुक्कदर से पूछ बैठते हैं हम
कि तू हमे इतने तज़ुर्बे क्यों देता है
कभी धूप में जलने छोड़ देता है
कभी खुद ही हमारे कदमों को ग़लत रास्तों से मोड़ देता है
तेरा शुक्रिया केरू
या तुझे सलाम
समझ नही पाता,
बस जब भी मुड़ कर देखता हूँ
मेरा सिर तेरे सजदे में झुक जाता..........

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