सागर का उछलता पानी
सागर का उछलता पानी
तेरी याद दिलाता है,
ये बदलता मौसम
तेरी खुशबू महकती है
ये गिरते हुए पत्ते
हर पल तेरा नाम जप्ते
आसमाँ का सिंदोरी रंग
बिखेरदेता वो पल जो बीते तेरे संग
समुन्द्र की लहरें भी
कानो में कुछ कह जाती है
सावन के झूलों पर मुझे
फिरसे झूला जाती है,
जब जब ये रेत मेरे पास सीप छोड़
समुंदर में समा जाती है
लगता है की तू मुझे छूँ जाती है
बिन तेरे जाने ये साँसे केसे चल रही हैं
हर पल मुझसे चल रहीं हैं,
मुझे बहलाने की कोशिश में लगीं हैं
पर शायद साँसों को भी नही पता
वो भी तेरी यादों में सनी हैं...
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