देह्शिय्त मौत की नहीं

देह्शिय्त मौत की नहीं
ख़ौफ़ ज़िंदगी का सताता है
ए खुदा के बंदे जो तेरे हाथ मैं नहीं
तू सोच कर उसके बारे में
क्यूँ जी दुखाता है,
वास्तविकता को स्वीकार कर
मौत का भी ना तिरस्कार कर,
ये तो सबको एक दिन है आनी
बन जानी एक नई कहानी
जो तेरा ना है
वो मिट्टी में मिल जाएगा
बस तेरा वजूद ही तेरे मरने के बाद ज़िंदा रह जाएगा.

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