सूरज की किरने रास्ता ढूंडे

सूरज की किरने रास्ता ढूंडे
कभी खिड़की से झाँके तुझे
कभी तेरी मुंडेर पर झूमें,
तेरे इंतेज़ार मैं
तू छुपी बैठी है किसकी आड़ में
की तुझे ज़िंदा होना है
तुझे फिर परिंदा होना,
क्युकि तूफ़ानो से डर कर बैठा नहीं करते
उन किताबो के पन्नो को मोड़ आगे भड़ते,
जब वक़्त आता है तब कफ्न भी पहनने देता हूँ
पर इसतरह जलने नही देता हूँ
सूरज

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