किस खुदा की खोज में तू दर दर भटकता

किस खुदा की खोज में तू दर दर भटकता
मैं तो तुझ में भी हूँ और उस में भी जो तुझे है खटकता,
मैं तो संसार के कण कण में हूँ व्यापक
गौर से देख तेरी नज़रें पहुँचे जहाँ तक,
जिसे मैने अपना रूप दे धरती पर उतारा
तूने तो उसे ही मिट्टी समझ धुतकारा ,
पत्थर की मूर्ति को पूजने से क्या सोचता है
मैं तुझे मिल जांउँगा ( नहीं )
प्रेम भाव से सबको देखना शुरू करदे
वादा है उस दिन ही दिख जांउँगा ...........


Comments

Popular posts from this blog

ग़लत फैमिय|

THINK POSITIVE