एक दास्तान सुनती हूँ
एक दास्तान सुनती हूँ,
अनचाहा आईना दिखती हूँ
जिसमे है हमारी पहचान छिपी
मैं उससे परिचय करवाती हूँ,
कि
क्या खोते हैं क्या पाते हैं
ये सब बनावटी बातें हैं,
अपने आज को हम जीते नही
सलोसाल जिएंगे ये सपने सजाते हैं
कमाल करता है तू ओ मानव,,,,,
कौन साथ है तेरे तुझे ईलम भी नही
किसी और का क्या कहना
तेरा तो अपना जिस्म भी नही,
जिस दिन तूने दम है तोड़ा
इसने तेरा साथ है छोड़ा,
तेरे साथ मर मिटने वाले भी मस्त हो जाएँगे
धयान से देखना हर ओर……….तुझे
केवल भगवान ही नज़र आएँगे……..
धन्यवाद
सोनाली सिंघल
अनचाहा आईना दिखती हूँ
जिसमे है हमारी पहचान छिपी
मैं उससे परिचय करवाती हूँ,
कि
क्या खोते हैं क्या पाते हैं
ये सब बनावटी बातें हैं,
अपने आज को हम जीते नही
सलोसाल जिएंगे ये सपने सजाते हैं
कमाल करता है तू ओ मानव,,,,,
कौन साथ है तेरे तुझे ईलम भी नही
किसी और का क्या कहना
तेरा तो अपना जिस्म भी नही,
जिस दिन तूने दम है तोड़ा
इसने तेरा साथ है छोड़ा,
तेरे साथ मर मिटने वाले भी मस्त हो जाएँगे
धयान से देखना हर ओर……….तुझे
केवल भगवान ही नज़र आएँगे……..
धन्यवाद
सोनाली सिंघल
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