आज फिर माँ की गोद मे सिर रख कर सोने का मन करता है
आज फिर माँ की गोद मे सिर रख कर सोने का
मान करता है,
भागती हुई इस ज़िंदगी मे कुछ पल अपना होने को मान करता है,
शायद घड़ा बहुत भर गया है
जिसको हलका करने ,
माँ के आगे रोने को मन करता है,
क्युकि आज याद आते हैं वो दिन ,
जब जीते थे ज़िम्मेदारीओं के बिन
जब हर तरफ थे खिलोने,
आँखों मे सपने सलोने ,
ना कोई वादे ना कोई कसमे,
हर पल थे अपने,
और हम अपनी माँ के सपने……………
धन्यवाद
सोनाली सिंघल
मान करता है,
भागती हुई इस ज़िंदगी मे कुछ पल अपना होने को मान करता है,
शायद घड़ा बहुत भर गया है
जिसको हलका करने ,
माँ के आगे रोने को मन करता है,
क्युकि आज याद आते हैं वो दिन ,
जब जीते थे ज़िम्मेदारीओं के बिन
जब हर तरफ थे खिलोने,
आँखों मे सपने सलोने ,
ना कोई वादे ना कोई कसमे,
हर पल थे अपने,
और हम अपनी माँ के सपने……………
धन्यवाद
सोनाली सिंघल
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